मोह
संसार में रहो किन्तु संसार के मोह से दूर रहो। जिस प्रकार कीचड़ में कमल विकसित होता है लेकिन उसके पत्ते कीचड़ से दूर ही रहते है। --
स्वामी विवेकानंद
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