स्वप्न
मैं उस चींटी की तरह हूं जो बार बार गिरने के बावजूद चढ़ती है। पर हार निराश नहीं करती। मैंने जान लड़ाकर काम किया और स्वप्न देखे।-- अमृतलाल नागर (1916- 1990)
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